Friday, March 28, 2008

एक विचारधारा

भारतीय नागरिक हूं। दिल और दिमाग दोनों से। यहां की हर एक विचारधारा का सम्मान करता हूं। जहां अच्छाई होती है, खुल कर प्रशंसा करता हूं और जहां बुराई होती है, थोड़ा मुंह फेर लेता हूं या हल्क लहजे में उसकी बुराई कर देता हूं।
कांग्रेस, भाजपा और वामपंथियों तीनों की अपनी-अपनी विचारधारा है। इन तीनों के विचारों का मैं सम्मान करता हूं। लेकिन इनके कृत्यों पर अपना पक्ष भी रखता हूं। यह लोग विचारों की राजनीति नहीं करते हैं। यह कुर्सियों की राजनीति करते हैं।
84 के दंगों के बारे में कांग्रेसियों को बोलिये या फिर भगवा रंग वालों को गोधरा या बाबरी मस्जिद के बारे में, इनका रुख तीखा और थोड़ा आरोप देने वाला हो जाएगा। ठीक इसी प्रकार नंदीग्राम और कन्नूर की घटनाओं के बारे में जवाब देते हुए वामपंथियों को तकलीफ देती हैं।
अब आम इंसान को उसके विचारधाराओं की गलतियों की ओर इंगित करेंगे तो वह आप पर आग बबूला हो या तो गाली देना शुरू करेगा या फिर दूसरे विचारधारा वाले की गलती को बताना शुरू कर देगा। यह कुछ ऐसा है, मेरी कमीज तेरी कमीज से कम गंदी है।
इसका सबसे अच्छा सबूत हमेशा तथाकथित बुद्धिजीवी ही पेश करते हैं। चाहे वो हमारे सम्मानीय नेतागण या मेधा पाटकर सरीखे समाजसेवी

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